Sunday, April 24, 2011

व्हीकल पर नाबालिग, नाबालिग की रफ़्तार


अक्सर ऐसा होता है की हम घर से अच्छे भले मूड से निकलते है लेकिन कोई न या कोई ऐसा नजारा देख लेते है या कोई ऐसा हादसा हो जाता है की लगता है की अब तो सारा दिन खराब ही जायेगा. मेरे साथ भी अक्सर ऐसा होता है. लगभग सुबह-सुबह सभी को जल्दी भी होती है. ऐसे में अगर हम कोई ऐसा नजारा देख भी लेते है तो कुछ नहीं कह-कर पाते लेकिन सारा दिन लगता है की आज मैंने जो देखा वो गलत हो रहा था या ऐसा नहीं होना चाहिए था.
अब देखो न सुबह हमको जितनी जल्दी होती है उससे कहीं ज्यादा जल्दी बच्चो को होती है. कभी सुबह जल्दी होती है स्कुल पहुँचने की तो कभी शाम को जल्दी होती है ट्यूशन जाने की. ऐसे में बच्चो के माता-पिता कभी-कभी उनके हाथ में व्हीकल भी थमा देते है, या जल्दी पहुँचने के चक्कर में बच्चे व्हीकल ले जाने की जिद पकड़ लेते है. उस समय कोई यह नहीं सोचता की बच्चा जल्दी पहुँचने की एवज में उसको कितनी रफ़्तार से चलाएगा या उसका स्कुल या ट्यूशन कोई ऐसी जगह तो नहीं है जहाँ से भारी वहां गुजरते है. और अगर ऐसे में बालक के साथ उसका कोई दोस्त बैठा है तो सोने पे सुहागा वाली बात साबित होती है. अक्सर इतनी कम उम्र के बच्चो को व्हीकल चलाते देखा जा सकता है और उसी समय अनायास ही हमारे मुहं से निकल जाता है की यह गलत बात है. जबकि कोई यह नहीं सोचता की जब देश का कानून उस बालक को व्हीकल चलने की इजाजत नहीं देता तो माता-पिता क्यों इतना बड़ा खतरा मोल लेते है.

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