Saturday, May 28, 2011

‘ए’ ग्रेड यूनिवर्सिटी ‘सी’ ग्रेड काम


हरियाणा दिवस के मौके पर वर्ष 1996 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल के प्रयासों से हिसार में गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो इसे हिसार का सौभाग्य माना गया और प्रदेश के लिए मील का पत्थर. लेकिन बीते दिनों विश्वविद्यालय में जो भी हुआ, वह इतने बड़े शिक्षा मंदिर से जुड़े किसी भी व्यक्ति को शर्मशार करने के लिए काफी है. गैर शिक्षक कर्मचारियों ने जिस तरह से शिक्षकों को पीटा, उसे देखकर कौन कह सकता है कि यह तकनीकी विश्वविद्यालय ‘ए’ ग्रेड विश्वविद्यालयों की श्रेणी में आता है. यह पहली बार नहीं है, जब गुजवि अपनी शैक्षणिक सफलताओं के बजाए विवादों व नित नए प्रयोगों के कारण चर्चा में रहा हो. यहां गुफ्तगू का मुद्दा यह है कि शिक्षा के इस मंदिर में राजनीति क्यों हावी है और ‘ए’ ग्रेड यूनिवर्सिटी में ‘सी’ ग्रेड काम क्यों हो रहे हैं.
शुरूआती समय में यहां पर 70 से भी ज्यादा विभिन्न कोर्सों को शुरू किया गया और देश के गिने-चुने तकनीकी विश्वविद्यालयों में इसकी गिनती होने लगी. शुरुआत के सालों में यहां पढऩे के लिए विदेशों से भी छात्र आए. बाद में जब भजनलाल की सरकार गिरी और बंसीलाल ने प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला तो सरकार ने गुजवि के ऊपर गाज गिराई. राजनीति का शिकार हुए इस विश्वविद्यालय में अधिकतर कोर्स को बंद कर दिया गया और केवल दो दर्जन के करीब कोर्स बाकी छोड़े गए. धीरे-धीरे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए यह विश्वविद्यालय आगे बढ़ता गया, लेकिन कभी हॉस्टल वार्डन पर गंभीर आरोपों के चलते निलंबन, कभी सीता के स्वयंवर के कारण विवादों में घिरा रहा. दागी व्यक्तियों को पदोन्नति देने का मामला हो या फिर नाटक में अर्जुन को एड़स दिखाने का मामला, यह विश्वविद्यालय विवादों के कारण ज्यादा चर्चा में रहा है.
गैर शिक्षक कर्मचारियों द्वारा शिक्षकों को पीटने से पहले विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के कुछ विद्यार्थियों ने विभागाध्यक्ष डा. वंदना पाण्डेय पर विद्यार्थियों के साथ भेदभाव व राजनीति के गंभीर आरोप लगाए. इन्हीं आरोपों के बाद मामला भडक़ा और विश्वविद्यालय के कुलपति के सचिव प्रकाश अरोड़ा व वंदना पाण्डेय के बीच विवाद पनपा. इसी विवाद का कमाल था कि गैर शिक्षकों ने शिक्षकों को पीट डाला. इनैलो छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व शिक्षा मंत्री एमएल रंगा इस विश्वविद्यालय के कुलपति हैं, लेकिन उन्हें विश्वविद्यालय के विकास से अधिक विभिन्न समारोहों में व्यक्तिगत तौर पर सम्मानित होने की इच्छा ज्यादा रहती है. लोगों में यह गुफ्तगू आम हो रही है कि आजकल यह विश्वविद्यालय शिक्षा कम राजनीति ज्यादा सिखा रहा है.

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