हिसार नगर में आजकल एक अजीब सी गुफ्तगू हो रही है. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा की आखिर दो सरकारी विभागों में से किस पर कौन सी कहावत चरितार्थ हो रही है. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे या अंधेर नगरी चौपट राजा... यहाँ आपको बता दूँ की हाल ही में विजिलेंस विभाग की टीम ने आबकारी एवं कराधान विभाग के सहायक जसवंत बांगा को 5 हजार रुपए रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा, मगर आरोपी के साथी कर्मचारियों ने, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी, मिलकर आरोपी को फरार होने में मदद की. आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारियों का आरोप है कि जसवंत बांगा को साजिशन फंसाया जा रहा है और वहीं विजिलेंस विभाग की टीम जसवंत को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने का दावा कर रही है।
समाचार का पहलु यह है की दोनों सरकारी विभाग में से एक विभाग तो गलत है. या तो आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारी सच बोल रहे हैं कि उनके साथी कर्मचारी को षडय़ंत्र के तहत फंसाया जा रहा है या फिर विजिलेंस विभाग की टीम का कहना सही है कि जसवंत बांगा रिश्वत ले रहा था। आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारी तो अपने साथी को बचाने के लिए हड़ताल पर भी बैठ गए।
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समाचार का पहलु यह है की दोनों सरकारी विभाग में से एक विभाग तो गलत है. या तो आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारी सच बोल रहे हैं कि उनके साथी कर्मचारी को षडय़ंत्र के तहत फंसाया जा रहा है या फिर विजिलेंस विभाग की टीम का कहना सही है कि जसवंत बांगा रिश्वत ले रहा था। आबकारी एवं कराधान विभाग के कर्मचारी तो अपने साथी को बचाने के लिए हड़ताल पर भी बैठ गए।
क्या वाकई विजिलेंस विभाग की टीम बिना किसी सबूत के एक ट्रांसपोर्टर के कहने पर सरकारी कर्मचारी को बिना वजह फंसा रही है, या रिश्वत लेने के आरोपी को उसके साथी बचा रहे है. अब दोनों विभाग में से एक विभाग के कर्मचारी सही हैं और एक गलत हैं। चाहे गलत या सही कोई भी हो, लेकिन नुक्सान तो जनता का ही है। अगर जसवंत बांगा सही में रिश्वत ले रहा था, तो एक परिपाटी शुरू हो जाएगी कि रिश्वत लेने वाले कर्मचारी को उसके साथी बचाने लगेंगे और अगर विजिलेंस विभाग गलत है तो उनकी अन्य छापामार कार्रवाइयों पर भी सवालिया निशान खड़े हो जाएंगे.
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