Thursday, June 16, 2011

क्यों हादसे से पहले नहीं जागते अधिकारी


शासन हो या प्रशासन, आज नींद से कोई जागना ही नहीं चाहता. नींद भी ऐसी की शासन की बिना धरने-प्रदर्शन और प्रशासन की कोई दुर्घटना से पहले खुलती ही नहीं. अब देखो ना रविवार-सोमवार की दरमियानी रात को डाबड़ा चौक के पास हुए एक हादसे में दो युवकों की मौत से बहुत ही गंभीर विषय पर गुफ्तगू शुरू हो गई है. यह हादसा सरासर पीडब्ल्यूडी, पब्लिक हैल्थ विभाग की लापरवाही व पुलिस विभाग द्वारा इस लापरवाही को नजरअंदाज किए जाने के कारण हुआ. इस हादसे से एक बार फिर लोगों के समक्ष प्रश्र खड़ा हो गया है कि क्या प्रशासन के अधिकारी जनता की भलाई के बारे में कभी ईमानदारी से सोचेंगे या नहीं. आखिर इस हादसे का असली जिम्मेदार कौन है. पीडब्ल्यूडी, पब्लिक हैल्थ या यातायात पुलिस विभाग या फिर सरकारी अधिकारियों की हादसे के बाद हरकत में आने की सोच. चार साल पहले डाबड़ा चौक पुल से उतरने के बाद कैंप चौक तक की सडक़ पर सीवरेज की नई लाइन बिछाने का काम कई महीनों तक चला. काम बहुत ही धीमी गति से किया गया. पहले तो सीवर लाइन के निर्माण के कारण जनता को बेवजह जरूरत से ज्यादा परेशानी उठानी पड़ी. उसके बाद भी सीवर लाइन डालने का फायदा जनता को नहीं मिला. हर बार बरसात में सीवर रूकने के कारण सडक़ पर पानी जमा हुआ. चार साल के अंदर-अंदर पीडब्ल्यूडी, पब्लिक हैल्थ विभाग इस लाइन पर बनाए गए मेनहोल का नक्शा ही भूल गया. पीडब्ल्यूडी-बीएंडआर के साथ पब्लिक हैल्थ विभाग का तालमेल नहीं था। तब ही तो विभाग सीवर लाइन के मेलहोल का नक्शा भूल गया. जनता की गाढ़ी कमाई से दिए गए टैक्स को बर्बाद कर दिया गया.
मेनहोल ढूंढने के लिए दिल्ली की कंपनी को ठेका दिया गया. पिछले सप्ताह कंपनी ने यह काम शुरू किया. मशीनों की मदद लेने के बावजूद सडक़ के बड़े हिस्से को खोद दिया गया. तब जाकर मेलहोल का पता लगा। अगर इतने बड़े हिस्से में सडक़ ही खोदनी थी तो फिर मशीनों का क्या फायदा था. यहां तो विभाग ने लापरवाही करी ही करी, मगर सडक़ खोदने के बाद वहां पर कोई चेतावनी बोर्ड नहीं लगाया. यह सबसे बड़ी लापरवाही थी. जिस जगह से सडक़ को खोदा गया, वह पुल के नीचे उतरते ही सामने आती है. पुल पर से अपनी गति में आ रहे वाहनों के लिए बिना चेतावनी बोर्ड के इस टूटी सडक़ से बचना काफी मुश्किल था. इसी का नतीजा था कि दो नौजवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
दो जानें जाने के बाद तवरित कार्रवाई हुई और टूटी सडक़ पर चेतावनी बोर्ड लगा दिया गया. मगर, क्या प्रशासन की हादसे के बाद नींद से जागने की यह आदत कभी बदलेगी. यह गुफ्तगू का विषय है. इस घटना में पब्लिक हैल्थ की घोर लापरवाही के साथ-साथ घटना का जिम्मेदार पुलिस विभाग की यातायात शाखा भी है. शहर में तेजी से बढ़ते ट्रैफिक को कंट्रोल में करने के लिए पुलिस विभाग मात्र खानापूर्ति कर रहा है. पुलिस विभाग की गाडिय़ां दिन-रात सडक़ों पर इधर से उधर पेट्रोल फूंकती दौड़ती रहती हैं. क्या पुलिस विभाग के यातायात अधिकारियों को बिना चेतावनी बोर्ड के सडक़ खुदी नजर नहीं आई. इसके अलावा नगर निगम भी इस हादसे में बराबर का हिस्सेदार है. शहर में स्ट्रीट लाइटों की खस्ता हालत भविष्य में भी ऐसे हादसे करवा सकती है. बिजली संरक्षण के नाम पर नगर निगम ने पूरे शहर में कम रोशनी वाली टी-5 लाइटें लगा दी, जो सडक़ के गड्ढों व रूकावटों पर रोशनी डालने में नाकाम हैं।
जल्द ही इस हादसे को भुला दिया जाएगा. मगर, क्या मरने वाले दोनों युवकों के परिजन कभी इस हादसे को भुला पाएंगे. इस वजह से नहीं कि उनके बेटे मारे गए. बल्कि इस वजह से कि दूसरों की लापरवाही की सजा उनके बेटों के साथ-साथ उनके परिवार वालों को भुगतनी पड़ी.

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