Sunday, December 11, 2011

हादसों का शहर



हाल फिलहाल हिसार में मानो एक कोहराम सा मचा हुआ है. एक के बाद एक हादसों से ना सिर्फ जनता डरी हुई है बल्कि जिला प्रशासन की नींद भी चौपट है. बावजूद इसके आज जहाँ ऐसे हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे है वहीँ इसके साथ-साथ प्रतिदिन ऐसे अनेकों नज़ारे सरेआम देखने-सुनने को मिलते है जिससे यह लगता है की आज हिसार शहर हादसों का शहर बन कर रह गया है. इन हादसों के पश्चात कभी जिला प्रशासन सख्त दिखाई पड़ता है तो कभी समाचार पत्र. ऐसा नहीं है की समाचार पत्र समय-समय पर प्रशासन को इन हादसों के प्रति सचेत नहीं करते लेकिन अधिकारीयों की नींद है की घटना घटने से पहले खुलने का नाम ही नहीं लेती. यहीं कारण है की कभी सीवरेज में गिरने से किसी को अपनी जान गवानी पड़ रही है तो कभी ऑटो पलटने से स्कूली बच्चे को काल का ग्रास बनना पड़ रहा है.
घटना घटने के बाद आनन्-फानन में उठाये गए कदमों से एक बारगी तो ऐसा लगता है की अब शायद ऐसी घटना पुनः नहीं होगी. अधिकारी और जनता भी हादसों के बाद एक दम सचेत खड़ी दिखाई देती है. लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता जाता है वैसे-वैसे हम इन दिल दहला देने वाले हादसों के बारे में लोग भूल जाते है. हादसों के पश्चात गुफ्तगू ही करने को बचती है की आखिर विभिन्न समाचार पत्रों में जब समय-समय पर हादसों को आमंत्रण देने के कारणों के बारे में खबर को प्रकाशित किया गया था तो प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया. अगर कुछ कदम उठाये भी गए हो तो यादें धूमिल होने के साथ ही किये गए इंतजाम भी ठन्डे बसते में चले जाते है. बाद में जनता और हादसों के शिकार होने वालों के परिजनों के हाथ लगती है तो सिर्फ मायूसी, और बचता है तो सिर्फ रोना.
ऐसा नहीं है की जनता और अधिकारीयों को पता नहीं है की नगर में ऐसा क्या-क्या हो रहा है जिनसे कभी भी बड़ी जानमाल की हानि हो सकती है. बावजूद इसके आज सभी आँखे मूंद कर घटना होने का इन्तजार करते है. सही मायने में तो आज हमारा घर भी हमारी ही लापरवाही के कारण हमारे लिए सुरक्षित नहीं है. ऐसे में हम यह कैसे मान ले की घर से निकलने के बाद हम सुरक्षित रह सकते है. सर्दी अपनी दस्तक दे चुकी है. ऐसे में जहाँ घर में लगा गैस गीजर लापरवाही के चलते कभी भी हादसे को दस्तक दे सकता है वहीँ असुरक्षित तरीके से उपयोग की गई रसोई गैस, बिजली, दवाई, मरम्मत व् कार्यक्रम घर में काल को खिंच कर ला सकते है. इसके अतिरिक्त वाहन चलाने, अग्निशमन यंत्र, खान-पान व् सफ़र के दौरान बरती गई हमारी लापरवाही हमारे लिए जाने-अनजाने में हादसे का सबब बन सकती है.
ऐसा नहीं है की हमारी जिंदगी में होने वाले हादसों के लिए सिर्फ हम ही दोषी है. घर से निकलने के पश्चात हम बहुत कुछ ऐसा देखते है जिसे देख एकाएक लगता है की यह गलत हो रहा है, या फिर हम किसी विभाग को कोसते है तो कभी किसी अधिकारी को. हम ना चाहते हुए भी अपनी आँखे मूंद लेते है. गैस किट लगी गाड़ियां, खुले मेनहोल, सड़क किनारे बैठे पशु, बंदरो का आतंक, आवासीय क्षेत्रो में बर्फ फैक्ट्रियां, छोटे-छोटे स्कूली बच्चो से लदे ऑटो व् हाथ रिक्शा, कालेज के छात्रों का बस पर लटक कर अपने गंतव्य पर जाना, बिजली के खम्बे व् तार, खड्डों से भरी सड़के व् यातायात व्यवस्था सुचारू ना होने के कारण आज मेरा शहर हादसों का शहर बन कर रह गया है. भले ही प्रशासन कुम्भकर्णी नींद सोया रहे लेकिन अब जनता को सबक लेना होगा और स्वयं इन हादसों के खिलाफ आवाज उठानी होगी.

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