Sunday, April 10, 2011

मौका भी, दस्तूर भी लेकिन....


अक्सर ऐसा होता है की हम सारे दिन में बहुत कुछ देखते है, सुनते है और इन सबके बाद बहुत कुछ महसूस भी करते है. लेकिन दिल में यह मलाल रह जाता है की हम मौके पर यह सोच कर चुप रह गए की यह सब हमारे साथ नहीं हो रहा. या जो भी गलत हो रहा है हम उसका हिस्सा नहीं है. मौका ख़ुशी का हो या गम का लेकिन बाद में सोचने के बाद यह लगता है की भले ही यह सब करने का मौका भी था या दस्तूर भी लेकिन जो कुछ हो रहा था वो सब गलत हो रहा था. हम में से हर कोई सप्ताह में कम से कम एक दिन कहीं ना कहीं किसी ना किसी को सार्वजानिक स्थान पर शराब का सेवन करते अवश्य देखता होगा. लेकिन हम यह सोच चुप रह जाते है की पीने दो हमारा क्या बिगड़ रहा है. लेकिन बाद में या तो इस बात का हम किसी के आगे जिक्र करते है या सोचते है की यह गलत हो रहा था. गुफ्तगू ने यह प्रयास किया है ऐसी ही कुछ गलत बातो को आपके समक्ष रखा जाये.



अब देखो ना भारत ने क्रिकेट वर्ल्ड कप के फाइनल में श्री लंका को हरा कर इतिहास रच दिया. जैसे ही भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने विजयी छक्का लगाया देश के लगभग हर शहर में लोग सडको पर निकल आये. सभी ने खूब मस्ती की, हो-हल्ला किया. इस दौरान आतिशबाजी भी हुई तो रंग-गुलाल भी उड़ाया गया. यह सब देख ख़ुशी हो रही थी की इस जीत से लोग कितने उत्साहित और खुश है. मौके पर बहुत से लोग ऐसे भी थे जो शराब पिए हुए थे तो बहुत से ऐसे थे जो शराब की दूकान से खरीद भी रहे थे. एक समय वो था जब जिस चौक पर मजमा जमा हुआ था उस चौक पर स्थित शराब की दूकान पर उस रात लाइन लगी हुई थी.
जैसे-जैसे चौक पर भीड़ जमा होती चली गई वैसे-वैसे व्यवस्था भी बिगडती चली गई. मौके की नजाकत को देखते हुए पुलिस ने किसी को कुछ नहीं कहा और सब कुछ सामान्य रूप से चलता रहा. इतने में ही शराब के खरीददार कुछ लोग तो अपने-अपने घर चले गए लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो मौके पर ही पीने लगे. सार्वजानिक स्थान पर शराब पीने वालो की संख्या में इजाफा ही हो रहा था और मजे की बात यह थी की पुलिस कानून के नाम पर चुपचाप खड़ी सब कुछ देख रही थी. पुलिस भी वही जो प्रतिदिन एक या दो मामले ऐसे दर्ज करती है की पुलिस ने इतने आदमियों को सार्वजानिक स्थान पर शराब पीने के जुर्म में गिरफ्तार किया है.
उस रात एक समय ऐसा आया जब शराब पी कम जा रही थी और उछाली ज्यादा जा रही थी. कुल मिला कर जहाँ नजर जा रही थी वहां पुलिस की आँखों के आगे सार्वजानिक स्थान पर शराब ही शराब नजर आ रही थी. ऐसे में जिस पर शराब गिर रही थी या जो दूर खड़ा होकर तमाशा देख रहा था उसको जरुर बुरा लग रहा था की भले ही जो कुछ हो रहा है उसको करने का मौका भी था और दस्तूर भी, लेकिन शराब को लेकर जो कुछ हो रहा है वो सब गलत हो रहा है.

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